09 May, 2015

शायरी- 2

रोना किसे था..?
काटो का दर्द हि कुछ ऐसा था,
हम बस चलते गये 
और आसू निकलते गये|
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आया हु यहा, ख़ुशी से जिने के लिये,
डरता हु, कही जिंदा लाश ना बन जाऊ,
इस दौड मे...!
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बेताबियां हि तो है दिल मे भरी,
चन लम्हे ख़ुशी क्या मिली,
बस जिंदगी जी ली...|
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दिलोंमे ख्वाहिशे तो बोहोत है....
बस, वक़्त कम पड जाता है.....|
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© अनिकेत भांदककर.

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